ऊं तत्सत...

प्रभु शरणम् के विस्तारित नया संस्करण आपके समक्ष प्रस्तुत करते अपार प्रसन्नता हो रही है और गर्व भी. मोबाइल में ही एक डिजिटल मंदिर बनाने के इस प्रयास को अपार स्नेह, आशीर्वाद देने के लिए आपका हृदय से कोटि-कोटि आभार.

डिजिटल संसार वैसे तो उपयोगी है पर इससे कई संकट भी खड़े हो रहे हैं. डिजिटल दुनिया अनियंत्रित है जिससे यहां अपसंस्कृति को फलने-फूलने का भरपूर मौका मिल जाता है. अच्छी चीजें ढूंढकर निकालनी पड़ती हैं जबकि कचरा चारों तरफ बिखरा पड़ा है. सोशल मीडिया पर हम बहुत ज्यादा समय देने लगे हैं पर वहां मिल क्या रहा है?

सोमवार को यह कर लो तो समझो जीवन बदल गया, मंगलवार को अगर यह कर लिया तो फिर समझो कि आप गए काम से, ये मैसेज सीधा अमुक धाम से आया है अगर इसे इग्नोर किया तो फिर आपके सारे काम बिगड़ जाएंगे. इसमें अमुक देवता की कसम लगी है... आदि, आदि.. क्या इसके आधार पर हम सीना तानकर कह पाएंगे कि सनातन ज्ञान आज के विज्ञान से भी कहीं आगे का ज्ञान है? इस तरह तो हम अपने ऋषि-मनीषियों द्वारा अनंत वर्षों के तप से अर्जित ज्ञान का नाश कर रहे हैं. यह एक सुनियोजित षडयंत्र है जिसमें भोले-भाले सनातनी फंसते जा रहे हैं.

इंटरनेट पर फैले कचरे से नकारात्मक होते मस्तिष्क को आध्यात्मिक खुराक देने की एक पहल है प्रभु शरणम्. ईश्वर डराते नहीं, डराते तो असुर हैं. इसलिए प्रभु शरणम् पर टोने टोटके, इंद्रजाल, मारण, मोहन, उच्चाटन, ईश्वर का डर दिखाकर भ्रमित करने वाले पोस्ट और अंधविश्वासी चीजों के लिए कोई स्थान नहीं है. और हो भी क्यों? निज अभ्यास से हम समझते हैं कि प्रभु प्रेम की भाषा ही समझते हैं फिर डरें क्यों, डराएं क्यों!

जिनकी अध्यात्म में रुचि है, उनके लिए इंटरनेट जगत पर एक मंदिर ही है, प्रभु शरणम्. इसे चलाने वाले न तो कोई साधु-संन्यासी हैं, न कोई आश्रम या संस्था. मैं भी आपकी तरह एक सामान्य भगवद्भक्त हूं, एक जिज्ञासु हूं जो सनातन ग्रंथों में अंकित अक्षरों में ईश्वर की बात ढूंढने का प्रयास करता है. फिर अपनी समझ के अनुसार उसे प्रस्तुत कर देता है. इसमें मेरा कुछ है ही नहीं. क्या सनातन कार्य का दायित्व सिर्फ साधु-संत ही उठाएंगे? हम आप जैसे सामान्य लोगों का भी तो दायित्व बनता है सनातन ध्वजा को ऊंचा रखने के लिए अपने हाथ बढ़ाने का. “रामजी का नाम है, रामजी का काम है” इसी मूलमंत्र को पकड़कर बढ़ना है. इस प्रयास के लिए जो भी प्रशंसा हो वह सब ईश्वर के खाते में, जो त्रुटि रही उसका अपराध मेरे माथे रहे. त्रुटियों को दूर करने का प्रयास करूंगा, इसमें आप सबके सहयोग मार्गदर्शन की हमेशा प्रतीक्षा रहेगी.

एक नया दीपक जलाना दुर्लभ है, उससे भी दुर्लभ हैं वे लोग जो उस दीपक में तेल डालें. उनसे दुर्लभ हैं वे जो तेल डालते हुए दीपक को हवा के झोंकों से भी बचा लें और सबसे दुर्लभ हैं ऐसे लोग जो उस दीपक के प्रकाश से स्वयं आलोकित होकर दूसरों को भी राह दिखाएं. आइए इस दुर्लभ कार्य को साथ-साथ मिलकर करें. सनातन पथ पर साथ-साथ रखें कुछ कदम.

सनातन सेवा पथ पर सदा अग्रसर रहें... ‘निर्विघ्नं कुरू में देव..’

राजन प्रकाश
संस्थापक, प्रभु शरणम्